दो शब्द, जो मैंने कहे ही नहीं,
गर कहे होते तो क्या मालूम
तुमने समझे भी होते या नहीं |
हैरां होती हूँ अब ये सोच कर
कैसे वो अनकही सारी बातें
तुम जान लिया करते थे
बिन कहे मेरे |
शब्दों के ताने बाने
शुरू जो हुए बुनने
तो यूँ उलझ जाएँगे
ये कहाँ सोचा था हमने |
बोल जो घुल जाया करते थे
जज्बातों के एहसास में
वही खड़े हैं यूँ बीच में
कंक्रीट कि दीवार जैसे
और इस पार से उस पार का
नहीं तय कर पाते हैं फासला |
यही सोच न कहे होंगे
मैंने वे दो शब्द भी
अक्सर लेकिन
अब सोचा करती हूँ
गर कह दिए होते
तो ढ़ह गई होती शायद
बीच खड़ी
वो शब्दों की दीवारें |
~ नी रा
तुमने समझे भी होते या नहीं |
हैरां होती हूँ अब ये सोच कर
कैसे वो अनकही सारी बातें
तुम जान लिया करते थे
बिन कहे मेरे |
शब्दों के ताने बाने
शुरू जो हुए बुनने
तो यूँ उलझ जाएँगे
ये कहाँ सोचा था हमने |
बोल जो घुल जाया करते थे
जज्बातों के एहसास में
वही खड़े हैं यूँ बीच में
कंक्रीट कि दीवार जैसे
और इस पार से उस पार का
नहीं तय कर पाते हैं फासला |
यही सोच न कहे होंगे
मैंने वे दो शब्द भी
अक्सर लेकिन
अब सोचा करती हूँ
गर कह दिए होते
तो ढ़ह गई होती शायद
बीच खड़ी
वो शब्दों की दीवारें |
~ नी रा
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