Monday, March 2, 2009

इरादे

रात गहरी ढल रही है
लौ बाती की बुझ गयी है
ऐसे में भी हार न माने
जीत की है मन में ठाने
जगमगाती घोर तिमिर को
कर्मयुद्ध को दहकाती

शनै: शनै: सुलग रही है
कर्मठ इरादों की आग


2 comments:

aditya chaudhary said...

bahut sundar neelam ji.. keep it up.

Sapphire said...

Thanks Aditya