Tuesday, October 12, 2010


दिन के उजाले से निकल, रात के धुंधलके में मिलने को चल पड़ी है इक शाम...
भीगी-भीगी, महकती गुनगुनाती सी शाम.....

1 comment:

vijay said...

जब दिल को बहलाएँगे खयालों से
बच जायेंगे इस जमाने के सवालों से
काली सूनी रातों के घनघोर अँधेरे
शायद अच्छे हों दिन के उजालो से